फ़िल्म :- सन ऑफ़ सरदार 2
कलाकार :- अजय देवगन, मृणाल ठाकुर, रवि किशन
निर्देशक :- विजय कुमार अरोड़ा
रेटिंग :- 2/5
संक्षिप्त में सन ऑफ़ सरदार 2 का प्लॉट :-
सन ऑफ सरदार 2 एक ऐसे शख्स की कहानी है जो एक असाधारण परिस्थिति में फँस जाता है। जस्सी (अजय देवगन) पंजाब में अपनी माँ (डॉली आहलूवालिया) के साथ रहता है। उसकी शादी डिम्पल (नीरू बाजवा) से हुई है, जो नौकरी के सिलसिले में यूके चली गई है। कई बार कोशिश करने के बाद जस्सी को आखिरकार यूरोप का वीज़ा मिल जाता है। वह लंदन पहुंचता है, लेकिन वहां जाकर उसे पता चलता है कि डिम्पल तलाक चाहती है — वो भी एलिमनी के साथ। जस्सी टूट जाता है और अपनी माँ को सच बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। इसलिए वह लंदन में ही रुक जाता है। वहीं एक लोकल कॉन्टैक्ट जस्सी को तलाक के केस के लिए वकील हायर करने की सलाह देता है। लेकिन वकील की जगह गलती से उसकी मुलाकात राबिया (मृणाल ठाकुर) से हो जाती है, जो पाकिस्तान मूल की एक मैरिज परफॉर्मर है। राबिया जस्सी को अपने साथ रहने के लिए इनवाइट करती है। उसके साथ उसकी सौतेली बेटी सबा (रोशनी वालिया), मेहविश (कुब्रा सैत) और गुल (दीपक डोबरियाल) भी रहते हैं। सबा को गोगी (साहिल मेहता) से प्यार है, जो एक खतरनाक बिज़नेसमैन राजा (रवि किशन) का बेटा है। राजा साफ कह देता है कि वह अपने बेटे की शादी किसी पक्के सरदार परिवार में ही कराना चाहता है। यहीं से राबिया और बाक़ी लोग जस्सी को मना लेते हैं कि वह कुछ समय के लिए सबा का पिता बनने का नाटक करे। सबा अपने बॉयफ्रेंड से झूठ बोल देती है कि जस्सी इंडियन आर्मी में कर्नल है! इसके बाद क्या होता है — ये बाक़ी की फ़िल्म में दिखाया जाता है ।
सन ऑफ सरदार 2 का रिव्यू :-
जगदीप सिंह सिद्धू और मोहित जैन की कहानी काफ़ी उम्मीदें जगाने वाली है। लेकिन असली कमी उनकी स्क्रीनप्ले में है, जो फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी बनकर उभरती है। फिल्म में ह्यूमर यानी हास्य का डोज़ बहुत कम है। जगदीप सिंह सिद्धू के डायलॉग ठीक-ठाक हैं, लेकिन लगातार मज़ेदार नहीं हैं। विजय कुमार अरोड़ा का निर्देशन औसत कहा जा सकता है। कुछ सीन उन्होंने अच्छे से हैंडल किए हैं — जैसे जस्सी का फिल्म बॉर्डर (1997) के सीन्स को अपने असली अनुभव की तरह सुनाना। इंटरवल के बाद का पोल डांसिंग सीन सिनेमाघरों में हँसी जरूर दिलाएगा। फिल्म का फिनाले, जो पूरी तरह से पागलपन से भरा है, दर्शकों की रुचि बनाए रखता है।
वहीं कमियों की बात करें तो, फिल्म की शुरुआत के पहले 30-40 मिनट बेहद बोरिंग हैं, जिससे लगता है कि फिल्म आखिर जा किस दिशा में रही है। फिल्म की कहानी, वेलकम, हाउसफुल और एक और एक ग्यारह जैसी कॉमिक फिल्मों की खिचड़ी लगती है। अफीम वाला ट्रैक अजीब है और पूरी तरह से फेल हो जाता है। वहीं बंटू भैया (संजय मिश्रा) का किरदार और उसके इरादे जब सामने आते हैं, तो उनका बर्ताव और भी ग़ैर-ज़रूरी और उलझा हुआ लगता है। अगर फिल्म में ह्यूमर भरपूर होता, तो बाकी कमज़ोरियों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता था — लेकिन अफसोस, हंसी की भारी कमी इस फिल्म को एक मिस्ड अपॉर्च्युनिटी बना देती है।
परफॉरमेंस :-
अजय देवगन ने अपने किरदार में पूरी ईमानदारी और आत्मविश्वास के साथ परफॉर्म किया है। उन्होंने जस्सी का रोल स्टाइल और मज़बूती से निभाया है। मृणाल ठाकुर का प्रदर्शन भी काफ़ी अच्छा है और उनकी स्क्रीन प्रेजेंस काफी प्यारी और प्रभावशाली है। रवि किशन इस फिल्म के सबसे दमदार परफॉर्मर साबित होते हैं। दीपक डोबरियाल को एक मनोरंजक किरदार निभाने का मौका मिला है और वे दर्शकों को हँसाने में कामयाब रहते हैं। कुब्रा सैत आत्मविश्वास से भरी हुई नजर आती हैं। शरत सक्सेना (राजा के पिता) की एंट्री भले ही देर से होती है, लेकिन वे अपने छोटे से रोल में भी प्रभाव छोड़ते हैं। विंदू दारा सिंह (टिटू) और दिवंगत मुकुल देव (टोनी) दोनों ही अपने-अपने किरदारों में प्यारे और दिलचस्प लगते हैं। रोशनी वालिया क्यूट लगती हैं और उनका अंदाज़ दर्शकों पर असर छोड़ता है । चंकी पांडे (दानिश) और संजय मिश्रा इस बार प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहते हैं। डॉली आहलूवालिया हमेशा की तरह विश्वसनीय हैं। साहिल मेहता का काम ठीक-ठाक है। जो कलाकार इंग्लिश मदर और जेनेट के रोल में हैं, वो अपने अभिनय से हँसी जरूर दिलाते हैं।
सन ऑफ सरदार 2 का म्यूज़िक और तकनीकी पक्ष :-
फिल्म का संगीत उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता। टाइटल ट्रैक को बड़े पैमाने पर फिल्माया गया है, लेकिन इसमें पहली फिल्म सन ऑफ सरदार (2012) के टाइटल सॉन्ग जैसा जोश या पकड़ नहीं है। 'पहला तू दूजा तू' गाना अपने नए डांस स्टेप की वजह से थोड़ा असर छोड़ता है, लेकिन इसकी टाइमिंग ज़बरदस्ती की लगती है। यही बात 'नज़र बट्टू' पर भी लागू होती है। 'द पो पो सॉन्ग' पूरी तरह से निराश करता है। 'रब्बा सानू' और 'नाचदी' जैसे गाने भी कोई खास छाप नहीं छोड़ पाते। अमर मोहितले और सलील अमरूट का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के मूड के अनुसार है और सही टोन सेट करता है।
असीम बजाज की सिनेमैटोग्राफी भव्य है, जो फिल्म को विज़ुअली रिच लुक देती है। गरिमा माथुर का प्रोडक्शन डिज़ाइन क्लासी है और माहौल को खूबसूरत बनाता है। राधिका मेहरा की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग स्टाइलिश और किरदारों के अनुरूप है। आर. पी. यादव का एक्शन बहुत सीमित है। निनाद खानोलकर की एडिटिंग औसत कही जा सकती है — न बहुत धारदार, न बहुत ढीली।
क्यों देंखे सन ऑफ सरदार 2 ?
कुल मिलाकर, सन ऑफ सरदार 2 की सबसे बड़ी कमजोरी इसका सीमित हास्य (कम ह्यूमर) है। बॉक्स ऑफिस पर भी इस फिल्म को नई और पहले से चल रही फिल्मों से जबरदस्त टक्कर मिलेगी, जिससे इसकी कमाई और प्रदर्शन पर असर पड़ना तय है।