फ़िल्म :- धड़क 2
कलाकार :- सिद्धांत चतुवेर्दी, तृप्ति डिमरी
निर्देशक :- शाज़िया इक़बाल
रेटिंग :- 3.5/5
संक्षिप्त में धड़क 2 का प्लॉट :-
धड़क 2, दो विपरीत वर्गों से आने वाले प्रेमियों की कहानी है । नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) एक निचली जाति से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने कोटे के तहत नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में दाखिला पाया है। वहीं उनकी क्लासमेट विधिशा उर्फ़ विधि (तृप्ति डिमरी) एक ऊँची जाति के परिवार से आती हैं । दोनों के बीच गहरी दोस्ती होती है और जल्द ही यह रिश्ता प्यार में बदल जाता है। विधि की बहन निमिशा (दीक्षा जोशी) की शादी तय होती है और विधि, नीलेश को शादी में शामिल होने के लिए आमंत्रित करती है। विधि का परिवार इस आमंत्रण से खुश नहीं होता, लेकिन फिर भी वे नीलेश को समारोह में आने की अनुमति दे देते हैं । नीलेश पूरे उत्साह के साथ शादी में शामिल होता है, लेकिन वहां जो कुछ होता है, वो उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा झटका बन जाता है। इसके बाद क्या होता है, यही है फिल्म की असली कहानी।
धड़क 2 मूवी स्टोरी रिव्यू :
धड़क 2, साल 2018 की तमिल फिल्म परियेरुम पेरुमल का आधिकारिक हिंदी रीमेक है। राहुल बडवेलकर और शाज़िया इक़बाल की एडॉप्ट की गई कहानी साधारण होते हुए भी गहराई से झकझोरने वाली है। यह सीन-बाय-सीन रीमेक नहीं है, बल्कि इसमें काफी हद तक नयापन लाया गया है। राहुल बडवेलकर और शाज़िया इक़बाल की स्क्रीनप्ले फर्स्ट हाफ़ में थोड़ी धीमी और ड्राई लगती है, लेकिन इंटरवल के बाद यह बहुत असरदार साबित होती है। उनके डायलॉग्स तीखे और सीधे दिल में उतरने वाले हैं।
शाज़िया इक़बाल का निर्देशन काफी प्रभावशाली है । उन्होंने जातिवाद की सच्चाई को जिस साहस के साथ दिखाया है, वह आज के दौर की गिनी-चुनी फिल्मों में ही देखने को मिलता है। फिल्म दिखाती है कि समाज में जातिगत भेदभाव आज भी कितनी गहराई तक फैला है। यही बात धड़क 2 को हालिया समय की सबसे साहसी फिल्मों में से एक बनाती है। फिल्म के दोनों मुख्य किरदारों को अच्छी तरह गढ़ा गया है और उनकी प्रेम कहानी के चलते जो सामाजिक टकराव सामने आते हैं, वे दर्शकों को बांधे रखते हैं। इंटरवल पॉइंट चौंकाने वाला है और यहीं से फिल्म एक नए स्तर पर पहुंचती है। क्लाइमेक्स भी उतना ही दमदार है – सिनेमाघरों में तालियां बजना तय है ।
कमियों की बात करें तो, फर्स्ट हाफ़ में फिल्म उतना असर नहीं छोड़ती जिसकी उम्मीद की जाती है। नीलेश और विधि के बीच इतनी जल्दी प्यार हो जाना थोड़ा अविश्वसनीय लगता है। शेखर (प्रियांक तिवारी) का ट्रैक अधूरा और जबरन जोड़ा हुआ लगता है, जिसे कहानी में ठीक से जस्टिफाई नहीं किया गया है। इसके अलावा, फिल्म का संगीत भी कमजोर कड़ी है – जो इस तरह की संवेदनशील कहानी में एक अहम भूमिका निभा सकता था।
परफॉरमेंस :-
सिद्धांत चतुर्वेदी ने एक बेहद चुनौतीपूर्ण किरदार को बड़ी सहजता से निभाया है। एक ऐसा युवक जो अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहता है लेकिन अपनी पहचान और सामाजिक स्थिति के चलते खुद को सीमित पाता है – इस द्वंद को सिद्धांत ने बड़ी खूबसूरती और गहराई से पर्दे पर उतारा है। उनका परफॉर्मेंस पूरी तरह से विश्वसनीय लगता है । तृप्ति डिमरी ने एक बार फिर दमदार परफॉर्मेंस दी है। हालांकि सेकेंड हाफ़ में उनका स्क्रीन टाइम थोड़ा सीमित है, लेकिन वह इंटरवल से पहले और क्लाइमेक्स में पूरी तरह छा जाती हैं। खासकर प्री-क्लाइमेक्स और क्लाइमेक्स में उनका अभिनय काफ़ी असरदार है। सौरभ सचदेवा (शंकर) का किरदार फिल्म में बेहद अहम है और उन्होंने अपने रोल को बखूबी निभाया है। कहना गलत नहीं होगा कि उनका अभिनय फिल्म के यादगार हिस्सों में से एक है। प्रियंका तिवारी का काम ठीक-ठाक रहा, लेकिन उन्हें स्क्रीन पर और मौके मिलने चाहिए थे। विपिन शर्मा (नीलेश के पिता) का किरदार फिल्म का सबसे अनोखा और दिलचस्प किरदार है – और हमेशा की तरह, उन्होंने एक भरोसेमंद अभिनय किया है। साद बिलग्रामी (रॉनी) ने खलनायक की भूमिका में ठीक-ठाक काम किया है। जाकिर हुसैन (प्रिंसिपल हैदर अंसारी) और हरीश खन्ना (विधि के पिता अरविंद) ने अपने-अपने किरदारों से गहरी छाप छोड़ी है।दीक्षा जोशी, आदित्य ठाकरे (वासु), अभय जोशी (प्रकाश - विधि के चाचा), अनुपा फतेहपुरिया (नीलेश की मां) और मंजरी पुपाला (ऋचा) ने भी अपने सहायक किरदारों में बेहतरीन काम किया है और फिल्म को संतुलन प्रदान किया है।
धड़क 2 फ़िल्म का संगीत और अन्य तकनीकी पहलू :
संगीत फिल्म की कहानी में अच्छी तरह पिरोया गया है, लेकिन इसके गानों में वह बात नहीं है जो लंबे समय तक याद रखे जाएं । ‘बस एक धड़क’, ‘प्रीत रे’, ‘दुनिया अलग’ और ‘ये कैसा इश्क़’ जैसे गाने भावनात्मक और सोज़भरे हैं, जबकि ‘बावरिया’ एक जोशीला, थिरकने वाला ट्रैक है जो म्यूजिक एल्बम को थोड़ा संतुलन देता है। तनुज टिकू का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के मूड और टोन से मेल खाता है और दृश्यों को बेहतर प्रभाव देता है।
सिल्वेस्टर फोन्सेका की सिनेमैटोग्राफी कहानी के अनुरूप है और फिल्म के यथार्थवादी ट्रीटमेंट को सही तरीके से सपोर्ट करती है । सुमन रॉय महापात्रा की प्रोडक्शन डिजाइन और प्रशांत सावंत की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग फिल्म को रियल लुक देने में सफल रही हैं। हर किरदार और लोकेशन में एक ग्राउंडेड रियलिज़्म झलकता है। अमृत सिंह द्वारा निर्देशित एक्शन सीक्वेंस दमदार हैं और ज्यादा हिंसक या असहज नहीं लगते। ओंकार उत्तम साकपाल और संगीथ वर्गीज़ की एडिटिंग (चारुश्री रॉय के पर्यवेक्षण में) कुल मिलाकर ठीक-ठाक है। हालांकि, पहले हाफ और दूसरे हाफ के कुछ दृश्यों को और ज्यादा क्रिस्प और टाइट बनाया जा सकता था, जिससे फिल्म की गति बेहतर होती।
क्यों देंखे धड़क 2 ?
कुल मिलाकर, धड़क 2, जाति व्यवस्था पर एक अहम टिप्पणी करती है । इसके साथ-साथ फिल्म का प्रभावशाली निर्देशन, दमदार अभिनय, कई जगहों पर झकझोर देने वाले दृश्य और बेहद ताकतवर क्लाइमेक्स इसे एक यादगार अनुभव बनाते हैं ।