फ़िल्म :- तन्वी द ग्रेट
कलाकार :- शुभांगी दत्त, अनुपम खेर, पल्लवी जोशी
निर्देशक :- अनुपम खेर
रेटिंग :- 2/5
संक्षिप्त में तन्वी द ग्रेट का प्लॉट
तन्वी द ग्रेट एक असाधारण लड़की की कहानी है। तन्वी रैना (शुभांगी दत्त) 21 साल की ऑटिस्टिक युवती है, जो दिल्ली में अपनी मां विद्या रैना (पल्लवी जोशी) के साथ रहती है। विद्या एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की ऑटिज़्म एक्सपर्ट हैं। तन्वी के पिता कैप्टन समर रैना (करण टेकर) एक फौजी थे, जिनकी मौत 14 साल पहले सियाचिन जाते वक्त हो गई थी।
विद्या को नौ महीने के लिए अमेरिका, न्यूयॉर्क जाना होता है एक स्पेशल प्रोजेक्ट के सिलसिले में। वो अपने ससुर रिटायर्ड कर्नल प्रताप रैना (अनुपम खेर) से तन्वी की देखभाल की ज़िम्मेदारी ले लेने को कहती हैं। प्रताप मान जाते हैं और तन्वी को उत्तराखंड के लैंसडाउन लाया जाता है।
प्रताप अकेले रहने के आदी हैं, ऐसे में तन्वी की मौजूदगी से उनकी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है। वो उसके व्यवहार को संभालने में भी संघर्ष करते हैं। उधर तन्वी को लैंसडाउन अच्छा लगता है, और वहां वो रज़ा साहब (बोमन ईरानी) से संगीत सीखने लगती है।प्रताप के घर में उसे अपने पिता की यादें जानने और समझने का मौका मिलता है — और ये कि उसका सपना था एक दिन सियाचिन में तिरंगे को सलामी देना। यहीं से तन्वी तय करती है कि वो अपने पिता का अधूरा सपना पूरा करेगी — और सेना में भर्ती होगी। लेकिन प्रताप उसे रोकते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि सेना ऑटिस्टिक लोगों को भर्ती नहीं करती। इसके बाद क्या होता है, यही फिल्म की बाकी कहानी है।
तन्वी द ग्रेट – मूवी स्टोरी रिव्यू (हिंदी)
अनुपम खेर और अभिषेक दीक्षित की कहानी नई और प्रेरणादायक है। स्क्रीनप्ले (अनुपम खेर, अंकुर सुमन, अभिषेक दीक्षित) में कुछ सुंदर दृश्य हैं — जैसे समर का एक्सीडेंट, तन्वी और प्रताप की पहली मुलाकात, और मेजर श्रीनिवास (अरविंद स्वामी) के साथ सीन। संवाद भी ठीक-ठाक हैं, लेकिन कुछ वन-लाइनर्स काफी ढीले और बनावटी लगते हैं। निर्देशन की बात करें तो अनुपम खेर अनुपम खेर का निर्देशन ठीक-ठाक है। उन्होंने फिल्म को बहुत अच्छे से रचा है और ऑटिस्टिक लोगों के बारे में एक ज़रूरी टिप्पणी भी की है। इरादा नेक है और यह साफ़ दिखाई देता है। यह भी साफ़ है कि फिल्म लिखने में काफ़ी रिसर्च की गई है। कुछ दृश्य बहुत अच्छे हैं, जैसे समर का एक्सीडेंट वाला सीन, तन्वी का प्रताप से पहली बार मिलना, तन्वी की मेजर श्रीनिवास (अरविंद स्वामी) से मुलाक़ात वगैरह।
वहीं कमियों की बात करें तो, जैसे ही तन्वी आर्मी ट्रेनिंग जॉइन करती है, कहानी अवास्तविक मोड़ लेने लगती है। कुछ दृश्यों में सिनेमाई स्वतंत्रता इतनी बढ़ जाती है कि विश्वसनीयता खत्म हो जाती है। गानों की अधिकता फिल्म की लंबाई को खिंचाव देती है, और कुछ बड़े कलाकारों के किरदार अधूरे से लगते हैं। क्लाइमेक्स इमोशनल होना चाहिए था, लेकिन उतना असर नहीं छोड़ पाता। VFX भी कमजोर है और अनुभव को कमज़ोर करता है। तन्वी का सेना में भर्ती होने का सपना प्रेरक तो है, लेकिन यह दर्शकों को पूरी तरह से स्वीकार्य नहीं लग सकता। SSB सिलेक्शन और सियाचिन वाले हिस्से कहीं-कहीं My Name Is Khan और 12th Fail जैसी फिल्मों की याद भी दिलाते हैं — पर उतनी गहराई नहीं ला पाते।
एक्टिंग :-
शुभांगी दत्त ने तन्वी के किरदार में शानदार प्रदर्शन किया है और वो भविष्य में एक बेहतरीन अभिनेत्री बन सकती हैं। हालांकि, किरदार की प्रस्तुति में निरंतरता की कमी दिखती है — कुछ दृश्यों में तन्वी पूरी तरह सामान्य नज़र आती हैं। लेकिन इसका दोष अभिनेत्री को नहीं, बल्कि मेकर्स को जाता है, क्योंकि उन्होंने जो निर्देश दिया, शुभांगी ने वैसा ही निभाया है। अनुपम खेर एक बार फिर अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। पल्लवी जोशी फिल्म में कम वक्त के लिए हैं लेकिन उनका प्रदर्शन खूबसूरत है — और उन्हें ज़्यादा स्क्रीन टाइम मिलना चाहिए था। करण टेकर एक कैमियो में हैं, लेकिन अपने छोटे रोल में भी प्यारे लगते हैं। बोमन ईरानी का किरदार स्क्रिप्ट की कमजोरी की वजह से असरदार नहीं बन पाता। जैकी श्रॉफ (ब्रिगेडियर जोशी), अरविंद स्वामी (मेजर श्रीनिवास), नासर (ब्रिगेडियर के एन राव) और आशीष कौशिक (डोगरा – श्रीनिवास का सहयोगी) अपने छोटे लेकिन अहम किरदारों में प्रभाव छोड़ते हैं। इयान ग्लेन (माइकल सिमंस) औसत हैं, वहीं गौतम आहूजा (मुकुंद) का अभिनय ओवर द टॉप यानी जरूरत से ज्यादा नाटकीय है।
तन्वी द ग्रेट फ़िल्म का संगीत और अन्य तकनीकी पहलू:
एम एम कीरवाणी का संगीत आज के ट्रेंड से अलग है, और यही बात इसे खास बनाती है। हालांकि, गानों में वो दोहराव या कैचिनेस नहीं है जो उन्हें लंबे समय तक यादगार बना सके। थीम म्यूज़िक सुकूनभरा है, और कुछ सीन्स में भावनात्मक गहराई लाता है। ‘मन चला मनवा’ एक दिल को छूने वाला गीत है, जबकि ‘ओ मेरे मन मोहन’ एक अच्छा गाना है लेकिन कहानी में ज़बरदस्ती डाला गया लगता है। ‘सेना की जय’ भी स्क्रिप्ट में फिट नहीं बैठता और जबरन जोड़ा गया लगता है। बैकग्राउंड स्कोर, हालांकि, एम एम कीरवाणी की ताक़त के रूप में सामने आता है — जोश और भावनाओं को एक साथ पकड़ता है। केइको नाकाहारा की सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है। लैंसडाउन के लोकेशन्स और सेना की दुनिया को खूबसूरती से कैमरे में कैद किया गया है। उर्वी आशर कक्कड़ का प्रोडक्शन डिज़ाइन क्लासी है, और फिल्म की टोन के साथ मेल खाता है। रोहित चतुर्वेदी की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग यथार्थवादी है, जो किरदारों को ज़मीन से जोड़े रखती है। वीएफएक्स सबसे बड़ा कमजोर पक्ष है — तकनीकी स्तर पर यह बहुत पिछड़ा हुआ लगता है। तुषार पारेख की एडिटिंग और कसी हुई हो सकती थी, कुछ सीन खिंचते हुए लगते हैं, जिससे फिल्म की गति प्रभावित होती है।
क्यों देंखे तन्वी द ग्रेट
कुल मिलाकर, तन्वी द ग्रेट एक सच्चे इरादे से बनी भावनात्मक फिल्म है, जिसमें कुछ दृश्य वाकई प्रभाव छोड़ते हैं। हालांकि, कहानी की रचना और फिल्म की लंबाई चुनौतीपूर्ण साबित होती है, और दूसरे हाफ़ में रफ्तार कुछ हद तक धीमी पड़ जाती है। फिर भी, फिल्म की ईमानदारी और संवेदनशीलता साफ़ झलकती है। बॉक्स ऑफिस पर यह एक प्रतिस्पर्धी माहौल में प्रवेश करती है, लेकिन अगर इसे सकारात्मक वर्ड-ऑफ-माउथ मिला, तो यह अपनी एक खास दर्शक वर्ग जरूर बना सकती है।